- गिरोह का सरदार बनने की चाहत में विक्रम ने मल्लाह साथियों के साथ बनाई थी योजना
- कुसुमा ने साजिश उजागर की तो श्रीराम-लालाराम ने विक्रम और उसके मामा को मार डाला
- बुधवार को कुसुमा नाइन का त्रयोदशी कार्यक्रम ससुराल में संपन्न
Dr. Rakesh Dwivedi
(Orai), Bundelkhand
ससुराल में तो दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन बहू बनकर नहीं रह पाई थी पर उसका अगला जन्म सुधारने की कल्पना में धार्मिक परम्पराओं का पालन उसके पति की तरफ से फिर भी किया गया। बेहद क्रूर रही कुसुमा की बीहड़ कहानी कई हिस्सों में बंटी रही। केदार उर्फ रूठे से विवाह के बाद बीहड़ों में वह तीन डकैतों की प्रेमिका बनकर रही। फूलन देवी के आपराधिक जीवन की उम्र पांच वर्ष तो कुसुमा का 24 वर्ष तक रहा। प्रेम, भय और अपराध की इस कहानी में चर्चा उस साजिश की है, जिसमें विक्रम मल्लाह ने दोनों भाइयों-श्रीराम-लालाराम को मार देना चाहता था पर उस साजिश का शिकार बाद में वह खुद ही हो गया। उस दिन उसकी प्रेमिका फूलन देवी भी रक्षा नहीं कर पाई थी। अपनी ससुराल बैजामऊ के पास उस रात विक्रम और उसके मामा बारेलाल मल्लाह दोनों को मार डाला गया था।
चम्बल-यमुना के बीहड़ों के कटाव और घुमावदार बीहड़ और वहाँ की कटीली झाडियों में सिर्फ डकैत ही नहीं छुपते थे, उनमें साजिशें भी छुपा करती थीं। श्रीराम-लालाराम दोनों सगे भाई थे जो जाति के ठाकुर थे। बाबू गुर्जर की हत्या के बाद इस गिरोह का सरदार श्रीराम था। पहले फूलन देवी फिर कुसुमा नाइन भी इस गिरोह का हिस्सा बनी। मतलब श्रीराम-लालाराम और कुसुमा नाइन को छोड़कर सभी सदस्य मल्लाह जाति के ही थे। यही बात विक्रम मल्लाह को अखरती रहती थी। जब भी दोनों भाई कहीं चले जाते तो मौका पाकर विक्रम अपनी बिरादरी के सदस्यों में विरोध की चिंगारी भड़काता रहता। वह कहता कि गिरोह में सभी सदस्य मल्लाह जाति के हैं और गिरोह ये ठाकुर भाई मिलकर चलाते हैं। जबकि गिरोह उसके नाम से चलना चाहिए। विक्रम बहुत तेज दिमाग, शातिर और दुस्साहसी था। बीहड़ों में जातिवार की आग सबसे पहले उसके द्वारा ही भड़काई गई थी जिसके बाद बेहमई, अस्ता और रोमई जैसे काण्ड सामने आये। इसके बाद से डकैतों को संरक्षण भी जातियों के आधार पर मिलने लगा।
यह साजिश पहली और बड़ी थी। इसकी पटकथा भी विक्रम ने मजबूती से तैयार की थी। यदि कुसुमा रणनीति के आधार पर चल पड़ती तो श्रीराम-लालाराम की जिंदगी पहले ही खत्म हो सकती थी। साजिश का एक हिस्सा कमजोर साबित होने से दांव उल्टा पड़ गया।
एक दिन श्रीराम और लालाराम अपने गाँव भाल गए हुए थे। तब विक्रम ने साफ-साफ कहा कि-अब ठाकुरों को गिरोह के मुखिया के रूप में बर्दाश्त नहीं करूंगा। मैंने योजना बनाई है कि माधो अपनी प्रेमिका कुसुमा को श्रीराम के हाथों सौंप दे। कुसुमा पहले उनका दिल जीते और अपनी बातों में फँसाये। फिर उन्हें एक दिन दारु पिलाये। नशा ज्यादा चढ़ने पर जब वे होश खो बैठें तो दोनों को मैं गोली मार दूंगा और गैंग का संचालन करूंगा।
माधो भी कुसुमा को श्रीराम को देने पर सहमत हो गया। गाँव से श्रीराम-लालाराम वापस आये। माधो ने उनके समक्ष जाकर बात रखी। प्रस्ताव से दोनों भाई खुश हुए। अब कुसुमा श्रीराम की हो गई और प्रेमिका बनकर रहने लगी। लालाराम भी उसे भौजी कहने लगा। प्यार और सम्मान पाकर कुसुमा नाइन का मन बदलने लगा। उसने एक दिन दोनों भाइयों को विक्रम और माधो की साजिश के बारे सब कुछ बता दिया। अब श्रीराम विक्रम को निपटाने की योजना में जुट गया। इसमें लालाराम और कुसुमा को भी साथ मिलाया।
एक दिन श्रीराम ने विक्रम से बैजामऊ किसी काम से चलने के लिए राजी किया। यह बात 1980 की है। बैजामऊ विक्रम की ससुराल थी। तब छह लोग गिरोह से बैजामऊ के लिए चल पड़े। विक्रम के साथ उसका मामा बारेलाल और फूलन देवी तथा श्रीराम, कुसुमा और लालाराम। सभी के पास रायफल थी। गाँव करीब आया तो श्रीराम ने विक्रम को यह कहते हुए रोक दिया कि थोड़ी देर में ही मैं आता हूँ, तब तक तुम लोग यही पर रुको। यदि कोई खतरा हुआ तो फायरिंग कर दूंगा, तुम लोग दौड़ कर आ जाना। बरगद का पेड़ था। तीनों लोग श्रीराम के लौटने का वहीं इंतजार करने लगे। रात के 12 बजे रहे थे। विक्रम और बारेलाल को नींद आ गई। सुरक्षा के लिए फूलन देवी रायफल के साथ पहरा देने लगी।
करीब आधा किमी. चलने के बाद श्रीराम, कुसुमा और लालाराम झाडियों की आड़ में बैठकर योजना बनाने लगे कि आज विक्रम को कैसे मारा जाए? करीब डेढ़ घंटे बाद तीनों वहीं लौटे जहां विक्रम को छोड़कर गए थे। दोनों लोगों को सोता हुआ पाकर कुसुमा ने सबसे पहले फूलन को रायफल सहित दबोच लिया। इसके बाद गहरी नींद में सो रहे विक्रम को श्रीराम ने और बारेलाल को लालाराम ने गोलियाँ मार दी। अब अकेले बची फूलन से उसकी रायफल छीनकर उसे बेहमई भेज दिया गया। विक्रम की मौत ठौर पर मौत हुई या बाद में इसको लेकर मतभेद है। एक जानकार का कहना है कि विक्रम का इलाज दिबियापुर में कराया गया था, लेकिन वह बच नहीं पाया।
दोनों को गोलियाँ मारने के बाद श्रीराम-लालाराम गिरोह में लौटे। गिरोह के सदस्यों को जब पता चला कि विक्रम व बारेलाल को गोली मार दी गई है और फूलनदेवी को कहीं गायब कर दिया गया है तो मल्लाह सदस्यों में असंतोष की ज्वाला फूट पड़ी। उसी वक्त सभी मल्लाह गिरोह से अलग होकर अपना अलग गिरोह बना और मान सिंह को अपना सरदार चुन लिया। कुछ समय बाद जब फूलन किसी तरह गिरोह तक पहुँची तो गिरोह को नई ताकत के साथ तैयार कर विक्रम की मौत का बदला बेहमई काण्ड के रूप में लिया। इसके बाद बदले की भावना में अस्ता और रोमई काण्ड भी हुए।
Post A Comment:
0 comments: