- पिछले तीन सप्ताह से वेंटीलेटर पर थे त्रिपुरारी पांडेय
- आंतों में संक्रमण के बाद Lucknow के प्राइवेट अस्पताल में थे भर्ती
- लीवर और किडनी में भी हो गया था इन्फेक्शन
- त्रिपुरारी पांडेय के निधन की खबर से शोक की लहर
Yogesh Tripathi
चर्चित Dy.SP त्रिपुरारी पांडेय का लंबी बीमारी के
बाद Monday को
राजधानी Lucknow के एक
प्राइवेट अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलते ही शोक की लहर दौड़ गई।
अपने अजब-गजब कारनामों और समाज सेवा के लिए हमेशा चर्चा में रहने वाले त्रिपुरारी
पांडेय ने UP Police की
नौकरी का एक बड़ा हिस्सा कानपुर और आसपास के जनपदों में ही पूरा किया। वर्तमान समय
में उनकी तैनाती जालौन के PTS
(पुलिस ट्रेनिंग सेंटर) में थी। 2022 में Kanpur में हुए दंगों के बाद उनकी कथित भूमिका
को लेकर एक शिकायत शासनस्तर पर हुई थी। जिसको संज्ञान में लेकर DGP ने
त्रिपुरारी पांडेय का तबादला कर दिया था।
प्रांतीय पुलिस सर्विस (PPS) अधिकारी त्रिपुरारी कुछ महीने से बीमार थे। चिकित्सकों ने उनके आंतों में संक्रमण बताया था। करीब एक महीना पहले उन्होंने लखनऊ के एक प्राइवेट अस्पताल में आंतों की सर्जरी करवाई थी। बताया जा रहा है कि सर्जरी के बाद उनकी हालत और बिगड़ गई। www.redeyestimes.com (News Portal) को मिली जानकारी के मुताबिक त्रिपुरारी पांडेय करीब दो हफ्ते से वेंटीलेटर पर थे। चिकित्सकों की टीम लगातार उनके स्वास्थ्य की निगरानी कर रही थी लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। Monday को त्रिपुरारी पांडेय ने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर मिलते ही पुलिस जगत में शोक की लहर दौड़ गई। Social Media पर उनके करीबी श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
1988 में सिपाही
के पद पर भर्ती हुए थे त्रिपुरारी पांडेय
त्रिपुरारी पांडेय 1988 बैच के सिपाही थे। करीब 10 साल बाद 1998 में पहला आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला तो वह हेड
कांस्टेबल बने। दरअसल त्रिपुरारी ने उस समय Kanpur के एक बड़े इनामिया बदमाश लाला हड्डी (गोदाम)
को 80 फिट रोड के पास दिनदहाड़े फिल्मी स्टाइल में हुई “नूराकुश्ती” के बाद Arrest कर
लिया था। 2002 में परीक्षा पास करने के बाद त्रिपुरारी
पांडेय सब इंस्पेक्टर (SI) बन
गए। 2005 में दोबारा ऑफ टर्न प्रमोशन मिला और
त्रिपुरारी पांडेय के कंधे पर दो गोल्डन स्टार की जगह तीन स्टार हो गए। मतबल कि वह
इंस्पेक्टर बन गए। तय समय बाद डीपीसी हुई और त्रिपुरारी पांडेय Dy.SP बने।
त्रिपुरारी पांडेय ने अपने जीवन में करीब 35 वर्ष तक UP Police की नौकरी की। इसमें वह सिपाही के पद से डिप्टी एसपी के पद तक पहुंचे। जिसमें करीब 25 साल वह कानपुर और आसपास के जनपदों में ही तैनात रहे। त्रिपुरारी पांडेय को करीब से जानने वाले लोगों की मानें तो पांडेय जी का “सिस्टम” बेहद टाइट था। DGP रैंक के अधिकारी त्रिपुरारी पांडेय को जानते थे। यही वजह थी कि वह हमेशा मनचाही पोस्टिंग पाते रहे। एक बार आगरा जनपद में तैनात रहे थे। कुछ समय के लिए वाराणसी, लखनऊ, मुगलसराय जीआरपी में भी त्रिपुरारी पांडेय तैनात रहे। Kanpur (GRP) में भी त्रिपुरारी पांडेय ने लंबा वक्त गुजारा। तीन साल पहले लखनऊ कमिश्नरी में त्रिपुरारी का तबादला हुआ था लेकिन अपने “सिस्टम” के बल पर त्रिपुरारी पांडेय कुछ दिन में ही जुगाड़ लगाकर कानपुर वापस आ गए। त्रिपुरारी पांडेय के साथ सिपाही रहे लोग अभी भी HCP और SI के पद पर ही कार्यरत हैं। त्रिपुरारी पांडेय किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते थे। उनकी आंखों में लगे काजल की चर्चा हर किसी पत्रकार और पुलिस वाले की जुबान पर रहती थी।
समाजसेवा में
भी आगे रहते थे त्रिपुरारी पांडेय
त्रिपुरारी पांडेय समाज सेवा में आगे
रहते थे। अपनी तैनाती के दौरान त्रिपुरारी पांडेय ने एक गरीब महिला को ई-रिक्शा
खरीदकर दिया था। इतना ही नहीं कानपुर के चर्चित संजीत यादव अपहरण और मर्डर केस के
बाद त्रिपुरारी पांडेय संजीत यादव की बहन की पढ़ाई का खर्च उठा रहे थे। वह संजीत
की बहन से राखी भी बंधवाते थे। कई बेटियों की शादी और कन्यादान भी त्रिपुरारी
पांडेय ने किया था। उनके सामाजिक सरोकार से जुड़े तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर आज
भी वॉयरल हैं।
विवादों से भी था त्रिपुरारी पांडेय का
गहरा नाता
अपने तगड़े “सिस्टम” की वजह से त्रिपुरारी पांडेय की तैनाती कानपुर और आसपास के जनपदों में ही रही। कई कथित एनकाउंटर भी किए। नई सड़क पर हुए दंगों की विवेचना के खेल में पांडेय जी फंस गए। सिर्फ फंसे ही नहीं बल्कि उसी में नप भी गए। रातों-रात उनका ट्रांसफर (जालौन पुलिस ट्रेनिंग सेंटर) कर दिया गया। नई सड़क बवाल के मामले में गठित SIT में त्रिपुरारी पांडेय शामिल थे। वह मुख्य विवेचक थे। सूत्रों के मुताबिक इसमें कई बड़े “खेल” पांडेय जी एक पार्षद के जरिए किए। सूचनाएं लीक करना और कुछ नामों को जोड़ने व घटाने की बात सामने आई। इसके अलावा कई और गंभीर मसलों की शिकायतें शासन को पहुंची। DGP ने शिकायत को गंभीरता से लेते हुए उनका तबादला कर दिया। कानपुर पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया गया कि तुरंत Dy.SP त्रिपुरारी पांडेय को रिलीव करें।
जब बर्रा-6 में त्रिपुरारी पांडेय ने दी दबिश
वर्ष 2004-05 में सपा की सरकार थी। सूबे के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। Kanpur में चर्चित IPS Officer रामेंद्र विक्रम सिंह की तैनाती हुई। रामेंद्र विक्रम सिंह की तैनाती से कुछ पुलिस वालों की किस्म का पिटारा खुल गया। उसमें एक त्रिपुरारी पांडेय भी थे। त्रिपुरारी पांडेय को कोहना थाने में बतौर थानेदार पोस्टिंग मिली। पांडेय जी की तैनाती कोहना थाने में थी लेकिन उनके “गुप्तचर” (मुखबिर) Kanpur के South एरिया में सक्रिय रहते थे।
सटीक
लोकेशन और सूचना के बाद एक रात पांडेय जी कोहना थाने की फोर्स लेकर बर्रा भाग-6
एरिया में दबिश देने पहुंच गए। यहां जमीन के नीचे एक चर्चित “शुक्ला जी” ने चोरी के पेट्रोल और डीजल को
भरने के लिए टैंक बना रक्खा था। पांडेय जी ने लंबे समय से चल रहे “शुक्ला जी” के तेल के खेल का नेटवर्क पूरी
तरह से ध्वस्त कर दिया। खास बात ये रही कि इसकी भनक न तो बर्रा थानेदार को लगी थी
और न ही क्षेत्राधिकारी गोविंदनगर को खबर मिली। इसके अलावा शहर में पहली बार RDX पकड़ने का काम भी त्रिपुरारी पांडेय ने ही किया था। थाना नौबस्ता
में उन्होंने खटारा कार के अंदर से RDX बरामद करने का तब दावा किया था। हालांकि रिपोर्ट में क्या निकला...? ये किसी को नहीं मालुम।
सांप भी मार दिया और लाठी भी नहीं टूटी
त्रिपुरारी पांडेय के किस्से और
कहानियां भी कम नहीं है। ताजा किस्सा कोरोना के समय का है। पांडेय जी की तैनाती सीसामऊ
में थी। पांडेय जी के “गुप्तचरों” ने बड़े पैमाने पर शराब बिक्री की खबर दी। जाहिर है कि पांडेय जी को ये भी बताया गया होगा कि कोरोना काल में
आखिर कौन सफेदपोश शराब की बिक्री करवा रहा है...? लेकिन इन सबके बाद भी पांडेय जी ने शराब तस्करी के नेटवर्क को
ध्वस्त कर कई लोगों को दबोच लिया। सफेदपोश सिंडीकेट बेनकाम हुआ तो अफसरों की सांसे
भी अटक गई। लिखापढ़ी तो पुलिस के अभिलेखों में हुई लेकिन चंद घंटे में ही पांडेय
जी ने सबकुछ मैनेज कर अफसरों को राहत दे दी। सिंडीकेट बेपर्दा न हो सका। कहने का
मतलब ये कि पांडेय जी ने सामने वाले सफेदपोश की कुंजी अपने पास हमेशा के लिए रख ली
थी।
विशेष----त्रिपुरारी पांडेय अपने पास एक पट्टा रखते थे। जिसकी मुठिया लकड़ी की होती थी। उसके दोनों तरफ लिखा होता था "आन मिलो सजना...." । शातिर अपराधियों पर यह पट्टा वह खूब चलाते थे।
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