• कुसुमा नाइन के दिए इस जख्म को जिंदा रहते फूलन देवी कभी भुला नहीं पाई थीं
  • पहले विक्रम मल्लाह के हाथों फूलन को मरवा डालना चाहता था फूलन का ताऊ
  • फूलन देवी दिसंबर 1978 और कुसुमा नाइन 1979 में ससुराल से पहुंची थीं बीहड़ 
  • बेजोड़ निशानेबाज कुसुमा नाइन को फूलनदेवी से भी क्रूर महिला डकैत कहा जाता है

 

पूर्व दस्यु सरगना राम आसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ के साथ डाकू कुसुमा नाइन।

Dr. Rakesh Dwivedi

बीहड़ी दास्तां का एक लंबा वक्त बीत गया। बात 1978 की है। जालौन के कालपी तहसील के शेखपुर गुढ़ा की यह लड़की अब सयानी हो रही थी। इसका नाम था फूलन देवी (Phoolan Devi)। कुछ वर्ष के अंतराल में ही न जाने क्या से क्या हो गई यह निषाद लड़की। उसके पिता देवीदीन जितने सीधे थे, उनके बड़े भाई गुरुदयाल उतने ही शातिर दिमाग। परिवार के पास जो भी जमीन थी,  उसका बड़ा हिस्सा गुरुदयाल के पास था और मात्र तीन बीघा जमीन देवीदीन के पास थी। इसी को लेकर फूलन अपने ताऊ से प्रतिवाद किया करती थी। फरवरी का महीना खत्म होने के करीब था। फूलन खेत से हरे चने (बूट) उखाड़ कर लाई थी और उसका होला भूनकर माँ- बहनों के साथ खा रही थी। तभी ताऊ के लड़के मैयादीन ने आवेश में आकर लाठियों से फूलन को धुन डाला। खेत से जब ताऊ लौटे तो उन्होंने भी मज़म्मत कर दी। ताऊ और उसके लड़के के हाथों हुई पिटाई को फूलन बर्दाश्त नही कर पाई। उसने इसका बदला लेने का ऐलान कर दिया। 

पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी (फाइल फोटो)

 

पिता और परिजनों को बुजदिल बताते हुए उन्हें भी कई अपशब्द बोल डाले। इसी गुस्से में वह अपनी बड़ी बहन के यहाँ टेंयोगा चली गई। कहा जाता है कि वहाँ उसका संपर्क कुछ आवारा लड़कों से हो गए। गाँव में तरह-तरह की बातें होने लगी तो बहन ने उसे पिता के घर शेखपुर गुढ़ा वापस भिजवा दिया। वे आवारा लड़के यहाँ भी आने लगे। इन लड़कों ने पारिवारिक लड़ाई में फूलन का साथ देना Start कर दिया। तब फूलन देवी के भयभीत ताऊ ने पुलिस की मदद लेकर चोरी के एक झूठे मामले में फूलन को जेल भिजवा दिया। चार दिन बाद फूलन उरई जेल से जमानत पर रिहा हुई। फूलन पर यह पहला मुकदमा था। जेल से छूटकर उसके तेवर बहुत गरम थे। वह किसी भी प्रकार ताऊ से इसका बदला लेना चाहती थी। क्योंकि उसे जेल जाने का दुःख था।

 

फूलन देवी ने गिरोह के साथ एमपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने सरेंडर कर दिया।

इसका एहसास ताऊ मैयादीन को भी हो गया। वह फूलन को रास्ते से हटाने के लिए बाबू सिंह गुर्जर गिरोह में शामिल विक्रम मल्लाह से मिला। उसे पैसे भी दिये गए। 1978 में दिसंबर की रात गिरोह के लोग उसे घर से उठा ले गए। विक्रम ने फूलन को जान से मारा नही बल्कि उसको शादी करने का भरोसा दिया। विक्रम मल्लाह और फूलन देवी एक दूसरे के बेहद करीब आ गए। इसी बीच एक दिन मौका पाकर बाबू सिंह गुर्जर (गिरोह के सरगना) ने फूलन देवी की इज्जत पर हाथ डाल दिया। विक्रम को जब पता चला तो वह खीझ कर रह गया लेकिन तब वह अकेला था तो शांत रह गया।

उस समय डकैत श्रीराम एक मामले में जेल में था। विक्रम ने अपने आदमियों की मदद से श्रीराम की जमानत करवाई। अब विक्रम मल्लाह और श्रीराम दोनों साथ-साथ थे। विक्रम मल्लाह ने एक दिन गिरोह के सरगना बाबू गुर्जर को मार डाला। यह घटना 1979 की है। इसी बीच कुसुमा नाईन को कुरौली से जाकर श्रीराम-लालाराम और उनके साथी उठा लाए। गिरोह के अस्थाई सदस्यों के साथ कुसुमा का मायके टिकरी से मिलना-जुलना था। 1980 में इस गिरोह ने खूब डकैतियाँ डाली। इस बीच फूलन देवी और कुसुमा नाइन के बीच तमाम बातों को लेकर प्रतिस्पर्द्धा Start हो गई। कुसुमा और फूलन श्रीराम-लालाराम और विक्रम मल्लाह को एक दूसरे के खिलाफ कान भरने लगीं। नतीजा यह हुआ कि गिरोह में दरार पड़ने लगी। एक दूसरे को निपटाने की कोशिश होने लगी। जिसका परिणाम ये रहा है कि विक्रम मल्लाह की हत्या कर दी गई। 

ये रूप सिंह हैं जिन पर फूलन देवी फिदा हो गईं और अपनी घड़ी इन्हें दे दी।

दिसंबर 1980 में जगम्मनपुर में जो छह अपहरण हुए थे, उनमें रूपसिंह यादव भी शामिल थे। तब रूप सिंह की उम्र करीब 18 वर्ष के आसपास रही होगी। बताते हैं कि रूप सिंह की मोहनी सूरत पर फूलन देवी फिदा हो गई थीं।  लौटते वक्त फूलन ने अपनी टाइम स्टार की कलाई घड़ी रूप सिंह को भेंट की थी। फूलन ने अपनी ज़िदगी की तमाम बातें भी साझा की थीं। फूलन ने रूप सिंह को तब बताया था कि एक बार लाला राम और कुसुमा नाइन ने बबूल के पेड़ से उसके (फूलन देवी) का हाथ बांधने के बाद निर्वस्त्र कर लटका दिया था। इसके बाद कुसुमा ने राइफल की बट से उसे बेरहमी से पीटा था। कुसुमा के दिये गए जख्म फूलन के दिलो-दिमाग पर उस वक्त तक बिलकुल हरे थे। वह इसका बदला भी लेना चाहती थी पर जीते जी कभी संभव न हो पाया।

 


यह बात जरूर है कि निशानेबाजी में कुसुमा सबसे बेजोड़ रही। इस कारण सभी डकैत उससे भय खाते थे । कुसुमा को सबसे ज्यादा क्रूर भी माना गया। एक बार लालाराम ने कुसुमा नाइन को मां की गाली दी तो कुसुमा ने उसे तुरंत कहा कि अभी इसी समय तुझे गोली से उड़ा दूंगी। तब लालाराम के पसीना छूट गया और वह कुसुमा से बोला कि तुमको आसमान तक मैने ही पहुंचाया है। इस पर कुसुमा ने कहा कि आसमान तक पहुंचाया है लेकिन नीचे नहीं उतार पाओगे। इसके बाद वह गिरोह छोड़कर दस्यु सरगना राआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ के गिरोह में शामिल हो गई। बाद में उसने फक्कड़ के कहने पर ही उसके साथ पुलिस के आगे सरेंडर कर दिया था। फक्कड़ और कुसुमा फिलहाल जेल में बंद हैं। दोनों को कई मामलों में सजा भी मुकर्रर हो चुकी है।

 

Note----Dr. Rakesh Dwivedi ने करीब दो दशक तक तक अमर उजाला अखबार में डेस्क और मुरादाबाद के साथ-साथ हिन्दुस्तान अखबार में अपनी सेवाएं दी हैं। वह लंबे समय तक हिन्दुस्तान अखबार में  ब्यूरो चीफ रहे हैं...वर्तमान में वह "अरविंद माधुरी तिवारी महाविद्यालय" के प्राचार्य हैं। 

 

 

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