- विपक्ष मजबूत होता तो किसान विरोधी कानून को न बना पाती Modi Government
- भाजपा कोई आंदोलन करे तो राष्ट्रवाद और किसान करे तो वह आतंकवादी
- किसानों को ये जख्म कैसे भरेंगे जिनके लिए सड़कों में गड्ढे कर कीलें ठोक दी गईं
आठ माह बाद बेटे के जन्म दिवस पर घर लौटे भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राजवीर सिंह जादौन केंद्र और प्रदेश सरकार की भूमिका से मर्माहत हैं। स्पष्ट कहा कि किसानों के दिल को बहुत दुखाया गया है। उसे आतंकवादी, मवाली कहकर अपमानित किया गया है। सरकार ने यदि किसानों को नुकसान पहुँचाने वाले तीनों कानून वापस नहीं लिए तो किसान भी घर वापस नहीं लौटेगा। हमारे लिए तो नस्ल और फसल बचाने को आर-पार की लड़ाई है।
किसानों का इससे अधिक अपमान कभी नहीं हुआ
राजवीर सिंह जादौन इंटरव्यू के दौरान अपनी पीड़ा को छिपा नहीं पाए। भावुकता को कंट्रोल करते हुए कहा, “हमारे आंदोलन को तोड़ने की हर तरह से कोशिश हुई। अधिकांश मीडिया हमारे खिलाफ खड़ी है। हतोत्साहित करने को हरियाणा में सड़कों पर बड़े- बड़े गड्ढे खोद दिए गए और मोटी-मोटी कीलों को गाड़ कर डराया जाने लगा। कितनी निराशा की बात है कि सड़कों के गड्ढे भरने वाली सरकार किसानों के सड़कों को खोदने में लगी रही। हद तो तब हो गई कि सरकार के मंत्री किसानों को आतंकवादी और मवाली ठहराने लगे।
तीन नहीं चार कानून लाइए पर MSP भी शामिल करें
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि हम कहां कह रहे हैं कि कृषि कानून न बनाए जाएं । हम तो कहते हैं कि तीन की जगह चार कानून बनें पर वह किसानों के हित में भी हों। एमएसपी को इसमें शामिल करने में क्यों परेशानी हो रही है ? यह सरकार कानूनों की आड़ में अदानी- अंबानी को लाभ पहुंचाने की कोशिश में है, जिसको कोई किसान भला कैसे बर्दाश्त करेगा ?
पूंजीपतियों की "गोद" में खेल रही है कृषि प्रधान सरकार
कानून में संशोधन के लिए कई दौर की लंबी वार्ताएं भले ही क्यों न हुई हों पर केंद्र सरकार के इरादे ठीक नहीं लगे। सरकार का झुकाव उद्योग पतियों की ओर ही झुका दिखा। यदि ऐसा न हो तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानून का दर्जा अवश्य मिलता। कितने आश्चर्य की बात है कि कानून तब आये जब अडानी के गो-डाउन बन चुके थे। मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि कृषि प्रधान सरकार उद्योगपतियों की गोद में खेलकूद रही है।
अटल जी ने किया था राष्ट्रधर्म का पालन
अपनी नाराजगी को तीव्रता देते हुए राजवीर जादौन ने कहा कि राष्ट्रधर्म की बातें करना और उस पर अमल करना दोनों में बहुत फर्क होता है। राष्ट्रधर्म के पाठ को अटल जी ने ही ठीक से पढ़ा था। किसानों की हालत दिनोदिन खराब होती जा रही है और सरकार उल्टा उनके खिलाफ ही खड़ी दिखती है। साफ- साफ कहा कि ये सरकार जैसी बातें करती है, नारे गढ़ती है पर उसके निर्णय विपरीत ही होते हैं।
आंदोलन की ताकत गिनती नहीं आत्मविश्वास से परखी जाती
सरकार ने तो अपना पूरा जोर लगा लिया पर हमारे हौसले को नहीं तोड़ सकी। सभी को अपने अस्तित्व पर जब चोट पहुँचाने का एहसास हुआ तो उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ गई। आखिर हम अपनी नस्ल और फसल को कैसे बर्बाद होने देंगे ? यह आंदोलन तो किसानों के जीवन - मरण से जुड़ा हुआ है। कदम वापस खींचने का अब तो सवाल ही नहीं ।
चुनाव में दिखा देंगे किसानों की ताकत
पंचायत चुनावों में भाजपा को पीछे धकेल दिया गया। अब विधान सभा चुनाव में किसान अपनी ताकत दिखायेगा। मैं चैलेंज करता हूँ कि बिना किसानों के वोटों की बदौलत भाजपा जीत कर दिखाए। कांग्रेस के विरुद्ध तो आंदोलन चलाने को पीछे से ये सहयोग करते थे, अब अपनी सरकार में किसानों को न जाने क्या - क्या नहीं कहा जा रहा है।
चुनाव नहीं लड़ेगी भारतीय किसान यूनियन
यह भाजपा की ही साजिश है कि भाकियू चुनाव लड़ने को आंदोलन कर रही है। मैं पूरी जिम्मेदारी से कहना चाहता हूँ कि भाकियू चुनाव से दूर रहेगी। हाँ, भाजपा और उसके समर्थित उम्मीदवारों को हराने के लिए जनता से आह्वान करेंगे। उन्होंने कहा कि भाकियू राजनैतिक दल है। किसानों के हित के लिए संघर्ष करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है और रहेगा।
मीडिया की भूमिका से भी हुई निराशा
प्रदेश अध्यक्ष ने माना कि यदि हमारी नीतियां पाक साफ न होती तो मीडिया के सहारे यह सरकार हमारे आंदोलन को निपटवा देती। अब तो खबर बेचने के लिए दिखाई और लिखी जाती है। फिर भी मीडिया में कुछ राष्ट्रवादी लोग भी हैं जो सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं। वे ही आंदोलन की हकीकत को सामने लाये।
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