Saurabh Bajpai
Assistant Professsor (Delhi University)
Congress एक सोलर सिस्टम या सौरमंडल की तरह है। अन्तरिक्षीय सौरमंडल के केन्द्र (कोर) में सूर्य है, जिसके नाम पर इस समूची व्यवस्था का नामकरण हुआ है। यदि सूर्य को उसके नियत स्थान यानी धुरी की स्थिति से हटाया गया तो सौरमंडल का उसकी परिधीय कक्षाओं (पेरिफेरल ऑर्बिट्स) समेत नष्ट होना तय है।
यह नहीं हो सकता कि प्लूटो को उठाकर केन्द्र में स्थापित कर दिया जाए और सूर्य को उठाकर सौरमंडल की सबसे बाहरी कक्षा में स्थापित कर दिया जाए। यहाँ तक कि सूर्य की सबसे नजदीकी कक्षा में बैठा बुध भी सूर्य की जगह नहीं ले सकता. क्योंकि वो आखिरकार बुध है, सूर्य नहीं।
अब क्षण भर के लिए सूर्य की जगह गाँधी-नेहरू पढ़िए और प्लूटो या बुध की जगह मार्क्स-लेनिन. सिर्फ़ विचार ही नहीं यह कार्यशैली पर भी उतना ही लागू होता है। क्या उत्तर प्रदेश कांग्रेस में ऐसे ही अनर्थकारी विस्थापन की कोशिश की जा रही है ? आज नेहरूजी की पुण्यतिथि पर लम्बे समय से लम्बित यह प्रश्न पूछना लाजमी लग रहा है।
Congress के सौरमंडल का जगमगाता सूर्य भारत का महान स्वाधीनता संग्राम है। वह स्वाधीनता संग्राम जिसके सर्वोच्च और सर्वमान्य नेता महात्मा गाँधी थे। उनके अतिरिक्त महानायकों की एक पूरी फेहरिश्त है जिसमें नेहरु, पटेल, सुभाष, मौलाना आजाद से लेकर तमाम अन्य धाराओं को समेटती तकरीबन साठ सालों की समृद्ध कांग्रेस-परम्परा है।
आजादी की लड़ाई के दौरान एक छतरी की तरह सबको समेटने वाली Congress 1947 के बाद एक राजनीतिक पार्टी में तब्दील हो गयी। कभी उसका हिस्सा रहे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और कुछ अन्य महत्वपूर्ण नेताओं ने कांग्रेस से अलग अपनी खास विचारधारा और पहचान पर आधारित अलग राजनीतिक दलों का निर्माण कर लिया। इनमें से अधिकांश राजनीतिक प्रयोग कालान्तर में विफल रहे, लेकिन कांग्रेस देश की मुख्यधारा की राजनीतिक ताकत के तौर पर आज तक मौजूद है।
इसकी सबसे बड़ी वजह उसे विरासत में मिली कांग्रेस की अपनी यह समावेशी सौरमंडलीय संरचना है। सौरमंडल में सूर्य से दूरी के हिसाब से बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, नेप्चून और प्लूटो आदि अपनी-अपनी कक्षाओं में विद्यमान हैं। इसी तरह कांग्रेस के सौरमंडल की विभिन्न कक्षाओं में तमाम तरह की राजनीतिक प्रवृत्तियाँ अपनी सापेक्षिक कक्षाओं में बैठी हैं।
हाँ, अन्तरिक्षीय सौरमंडल से Congress का सौरमंडल इस मामले में भिन्न है कि इन कक्षाओं की केन्द्र से दूरी समय-काल-परिस्थिति के अनुरुप घटती-बढ़ती रहती है। इन कक्षाओं में दक्षिणपंथी से लेकर वामपंथी, यहाँ तक कि दूर की कक्षाओं में तो धुर वामपंथी तक, अपनी रुचि और सुविधा के अनुसार बने रह सकते हैं। लेकिन इस सौरमंडल की बुनियादी शर्त यह है कि गाँधी-नेहरु की अगुवाई वाले स्वाधीनता संग्राम की विरासत इसके केन्द्र में रहनी चाहिए।
इस विशेषाधिकार वाली स्थिति के बावजूद, कांग्रेस का केन्द्र अपने आपमें बहुत समावेशी रहा है। धुरी पर घूमती कोई राजनीतिक प्रवृत्ति उसके केन्द्रीय तत्व के साथ विलय के लिए तत्पर दिखती है तो उसने दोनों हाथ फैलाकर उसका स्वागत किया है।
लेकिन इसकी दो मूल शर्तें हैं— पहला, वह प्रवृत्ति उसकी केन्द्रीय प्रवृत्ति की पूरक होनी चाहिए, विरोधी नहीं। दूसरा यह कि विलय की शर्तें कांग्रेस की कोर आइडियोलॉजी तय करेगी न कि विलय होने वाला समूह खुद बताएगा कि क्या करना है। इसलिए हर हाल में यह सिर्फ और सिर्फ कोर में पेरिफेरी का ‘विलय’ होगा, किसी भी कीमत पर Congress की कोर आइडियोलॉजी का ‘विस्थापन’ नहीं।
यह मान्यता बिल्कुल गलत है कि कांग्रेस बिना किसी ठोस वैचारिक आधार का एक ढीलाढाला संगठन है। कांग्रेस की कार्यशैली को दक्षिणपंथ या वामपंथ कुछ हद तक घुसकर प्रभावित भले कर सकता है, लेकिन अगर उसके कोर को जरा-सा भी खिसकाने की कोशिश की गयी तो यह देश का बहुत बड़ा नुकसान होगा।
Uttar Pradesh Congress पर CPI (ML) तत्वों के बढ़ते दबदबे पर इसी सन्दर्भ में बात करना जरुरी है। कहीं यह कांग्रेस के “सौरमंडल” को इस हद तक नुकसान न पहुँचा दे कि आजाद भारत के सबसे कठिन दौर में हमारी लड़ने की क्षमताएँ पंगु हो जाएँ। हमारे जैसे तमाम लोग जो कांग्रेस के बाहर होते हुए भी कांग्रेस को इस निर्णायक लड़ाई की एकमात्र उम्मीद मानते रहे हैं, उनकी चिन्ता की मूल वजह यही है।
Note-----यह लेखक के निजी विचार हैं।
आने वाले लेख का इंतजार रहेगा
जवाब देंहटाएं