73 शस्त्र लाइसेंस
अभी तक की जांच में फर्जी पाए गए
जांच के दौरान विनीत ने खाया था जहर
कानपुर में करीब 73 फर्जी शस्त्र लाइसेंस जारी कर असलहों की खरीद-फरोख्त की गई। जब इस मामले का खुलासा हुआ तो जिलाधिकारी ने जांच सीडीओ को सौंप दी। जांच चल रही थी कि इस बीच असलहा बाबू विनीत कुमार ने जहरीला पदार्थ खा लिया। जांच के दौरान पता चला कि शस्त्र लाइसेंस में एक बड़े अफसर समेत कई लोगों की भूमिका संदिग्ध है। सीडीओ के जांच रिपोर्ट सौंपते ही कोतवाली में असलहा बाबू विनीत कुमार और जितेंद्र समेत कई अज्ञात लोगों के खिलाफ संबधित धाराओं में रिपोर्ट पुलिस ने दर्ज की। पूरे मामले में एक बड़े अफसर को किसी तरह से बचा लिया गया।
जेल गए असलहा बाबू विनीत कुमार ने 4 सितंबर को अग्रिम जमानत अर्जी दी थी। अपर जिला जज विनोद कुमार सिंह ने पारित कर दी थी। इसके बाद से विनीत के गिरफ्तारी की अटकलें तेज हो गई थीं। गिरफ्तारी से बचने के लिए विनीत में सरेंडर कर दिया। सरेंडर की सारी प्रक्रिया गुप्त रखी गई है। कोर्ट में सरेंडर करते ही विनीत कुमार को तुरंत कस्टडी में लेकर जेल भेज दिया गया। वैसे सामान्य तौर पर कस्टडी में लेने के बाद कोर्ट की बैरक में रखकर देर शाम जेल भेजा जाता है लेकिन यहां मीडिया का खौफ जिला प्रशासन के अफसरों में साफ तौर पर देखा गया।
फर्जीवाड़ा उजागर
होने के बाद DM ने सौंपी थी CDO को जांच
जांच के दौरान ही
असलहा बाबू विनीत कुमार ने खा लिया था जहर
जांच के दौरान एक
बड़े अफसर की गर्दन किसी तरह बचाई गई
कोतवाली में जिला
प्रशासन ने दर्ज कराई थी कुछ दिन पहले FIR
शहर के एक चर्चित
वकील समेत कई सफेदपोश अभी भी हैं खुफिया के रडार पर
Yogesh Tripathi
CMM Court में सरेंडर के बाद आरोपी असलहा बाबू को अदालत ने न्यायिक हिरासत में तुरंत जेल भेज दिया।
CMM Court में चुपचाप किया सरेंडर
Uttar Pradesh के Kanpur Nagar में फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले में मुख्य आरोपी असलहा बाबू
विनीत कुमार ने शनिवार सुबह बेहद गुपचुप तरीके से चीफ मेट्रोपोलिटेन मजिस्ट्रेट (CMM) की अदालत में सरेंडर कर दिया। कोर्ट ने
आरोपी बाबू को न्यायिक हिरासत में लेने के बाद 14 दिन के लिए जेल भेज दिया। इस
दौरान आरोपी बाबू अपने मुंह पर गमछा डालकर खुद को मीडिया के कैमरों से बचाने की
पूरे समय कोशिश करता नजर आया। कोर्ट के दरवाजे पर सिपाही जैसे ही उसे लेकर आए
मीडिया के कैमरे आखिर वो कैद ही हो गया।
जांच के दौरान विनीत ने खाया था जहर
कानपुर में करीब 73 फर्जी शस्त्र लाइसेंस जारी कर असलहों की खरीद-फरोख्त की गई। जब इस मामले का खुलासा हुआ तो जिलाधिकारी ने जांच सीडीओ को सौंप दी। जांच चल रही थी कि इस बीच असलहा बाबू विनीत कुमार ने जहरीला पदार्थ खा लिया। जांच के दौरान पता चला कि शस्त्र लाइसेंस में एक बड़े अफसर समेत कई लोगों की भूमिका संदिग्ध है। सीडीओ के जांच रिपोर्ट सौंपते ही कोतवाली में असलहा बाबू विनीत कुमार और जितेंद्र समेत कई अज्ञात लोगों के खिलाफ संबधित धाराओं में रिपोर्ट पुलिस ने दर्ज की। पूरे मामले में एक बड़े अफसर को किसी तरह से बचा लिया गया।
विनीत पर लटक रही थी गिरफ्तारी की “तलवार”
जेल गए असलहा बाबू विनीत कुमार ने 4 सितंबर को अग्रिम जमानत अर्जी दी थी। अपर जिला जज विनोद कुमार सिंह ने पारित कर दी थी। इसके बाद से विनीत के गिरफ्तारी की अटकलें तेज हो गई थीं। गिरफ्तारी से बचने के लिए विनीत में सरेंडर कर दिया। सरेंडर की सारी प्रक्रिया गुप्त रखी गई है। कोर्ट में सरेंडर करते ही विनीत कुमार को तुरंत कस्टडी में लेकर जेल भेज दिया गया। वैसे सामान्य तौर पर कस्टडी में लेने के बाद कोर्ट की बैरक में रखकर देर शाम जेल भेजा जाता है लेकिन यहां मीडिया का खौफ जिला प्रशासन के अफसरों में साफ तौर पर देखा गया।
खुफिया के रडार पर हैं सफेदपोश, वकील, और
कारीगर
शस्त्र लाइसेंस के फर्जीवाड़े का मामला यूं तो जिला प्रशासन
के स्तर पर करीब-करीब खत्म हो चुका है लेकिन खुफिया की टीमों के साथ-साथ एंटी
टेररिस्ट स्कॉवयड (ATS) के रडार पर अभी शहर के कुछ सफेदपोश, चर्चित वकील और कारीगर
बने हुए हैं। www.redeyestimes.com (News Portal) को सूत्रों से जो
जानकारी मिली है उसके मुताबिक खुफिया एजेंसियां इस बात की गोपनीय तौर पर छानबीन कर
रही हैं कि कहीं ये असलहे आतंकियों और नक्सलवादियों को तो नहीं बेच दिए गए हैं ? उसके पीछे की कई वजहे हैं।
खास बात ये है कि शहर का नक्सलियों और आतंकियों से कानपुर का कनेक्शन काफी पुराना है। 2008 में चकेरी थाने के तत्कालीन थानेदार सतीश गौतम ने ऐसे ही एक नक्सली को पकड़ा था। वो राइफल के लाइसेंस के लिए थानेदार पर दबाव बना रहा था। पैरवी तब बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके प्रत्याशी कर रहे थे। जब उस नक्सली को सतीश गौतम ने पकड़ा था तो उसके पास से AK-47 के कारतूसों का बड़ा जखीरा बरामद हुआ था। इतना ही नहीं पकड़ा गया नक्सली एक लाख रुपए का इनामी भी था। इन सब बिन्दुओं पर अभी तक जिला प्रशासन ने कोई काम नहीं किया है।
खास बात ये है कि शहर का नक्सलियों और आतंकियों से कानपुर का कनेक्शन काफी पुराना है। 2008 में चकेरी थाने के तत्कालीन थानेदार सतीश गौतम ने ऐसे ही एक नक्सली को पकड़ा था। वो राइफल के लाइसेंस के लिए थानेदार पर दबाव बना रहा था। पैरवी तब बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके प्रत्याशी कर रहे थे। जब उस नक्सली को सतीश गौतम ने पकड़ा था तो उसके पास से AK-47 के कारतूसों का बड़ा जखीरा बरामद हुआ था। इतना ही नहीं पकड़ा गया नक्सली एक लाख रुपए का इनामी भी था। इन सब बिन्दुओं पर अभी तक जिला प्रशासन ने कोई काम नहीं किया है।
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