Lok Sabha Election 2019 : करीब 18 लाख मतदाताओं वाले अकबरपुर लोकसभा का चुनाव दिन पर दिन बेहद दिलचस्प होता जा रहा है। BJP ने जहां वर्तमान सांसद देवेंद्र सिंह "भोले" को फिर से रिपीट किया है तो कांग्रेस ने Rajaram Pal पर दांव लगाया है। सपा-बसपा गठबंधन ने Nisha Sachan Bsp को “चुनावी रण” में उतारा है। राजनीति के “चाणक्य” इस चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष बता रहे हैं। मतदाता यहां चौथे चरण यानि 28 एप्रिल को वोट डालेंगे। BJP प्रत्याशी सांसद देवेंद्र सिंह "भोले" के प्रति कई जगहों पर मतदाताओं की नाराजगी साफ-साफ दिख रही है। वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी Rajaram Pal को हर वर्ग (खासतौर पर ब्राम्हण) का साथ मिलता दिखाई दे रहा है। निशा सचान का चुनाव बेहद शांत है लेकिन ऐसा नहीं है कि वे चुनाव की लड़ाई से बाहर हैं। यदि यादव वर्ग पूरी तरह से निशा के साथ रहा तो चुनाव परिणाम चौंकाने वाले आ सकते हैं। भोले को सिर्फ और सिर्फ कल्याणपुर विधान सभा का सहारा है। जहां से हमेशा BJP ने हारी बाजी को जीत में तब्दील किया है।
Yogesh Tripathi
अकबरपुर की 5 विधान सभा में है BJP के विधायक
अकबरपुर लोकसभा के अंतर्गत 5 विधान सभाएं (कल्याणपुर, घाटमपुर, बिठूर, रनिया, महाराजपुर) आती हैं। महाराजपुर से सतीश महाना, बिठूर से अभिजीत सिंह सांगा, रनिया से प्रतिभा शुक्ला, घाटमपुर से कमलरानी वरुण और कल्याणपुर से नीलिमा कटिया (सभी BJP) के विधायक हैं। इस समीकरण के हिसाब से तो बीजपी प्रत्याशी देवेंद्र सिंह भोले को घर बैठकर ही चुनाव जीत जाना चाहिए लेकिन ऐसा है नहीं। भरी दुपहरी उनको पसीना बहाना पड़ रहा है। कहीं भीतरघात है तो कहीं आक्रोश।
घाटमपुर बड़ी लीड ले सकते हैं राजाराम पाल
कांग्रेस प्रत्याशी राजाराम पाल का पैतृक गांव घाटमपुर विधान सभा के अंतर्गत आता है। घाटमपुर विधान सभा के वोटर्स पर उनकी मजबूत पकड़ है। कई गांव तो ऐसे हैं तो किसी दल से न जुड़े होकर सीधे तौर पर राजाराम पाल से ही जुड़े हुए हैं। यही वजह है कि राजराम पाल की स्थित घाटमपुर विधान सभा में काफी मजबूत है। इस विधान सभा में राजाराम पाल को सीधी टक्कर निशा सचान देती नजर आ रही हैं। निशा के पति गुड्डू सचान नगर पालिका के चेयरमैन हैं। क्षेत्र में उनकी भी एक वर्ग में खासी पकड़ है। बीजेपी यहां तीसरे नंबर पर आ सकती है।
रनिया विधान सभा में नाराज है ब्राम्हण वोटर्स
रनिया विधान सभा में ब्राम्हण वोट काफी अधिक है। यहां से प्रतिभा शुक्ला विधायक हैं। 2014 के चुनाव में यहां के ब्राम्हणों ने भोले को जमकर वोट किया था लेकिन इस बार हालत बिल्कुल उलट हैं। ब्राम्हण मतदाता काफी नाराज है। उसके पीछे की कई वजहे हैं। अंदरखाने की मानें तो यहां पर राजाराम पाल ने तगड़ी सेंधमारी कर रखी है। राजाराम पाल को यहां पर दलित वोट भी ठीक-ठाक मिलेगा। कुल मिलाकर इस विधान सभा में भी राजाराम पाल 21 साबित हो सकते हैं। बीजेपी को यदि यहां पर चुनाव जीतना है तो प्रतिभा शुक्ला और उनके पति अनिल शुक्ला वारसी को आगे लाना पड़ेगा। जो अभी तक होता नहीं दिख रहा।
बिठूर विधान सभा से आ सकता है चौंकाने वाला परिणाम
बिठूर विधान सभा से जो भी परिणाम आएगा वो चौंकाने वाला होगा। यहां लड़ाई बेहद दिलचस्प है। ठाकुर मतदाता तो खुलकर बीजेपी प्रत्याशी के साथ खड़ा है लेकिन कुछ वर्ग कई वजहों से विरोध की मुद्रा में भी है। राजाराम पाल को यहां पर अपने एक पुराने और करीबी “रिश्ते” का अंदरूनी तौर पर बड़ा लाभ मिलता दिखाई दे रहा है। यहां से भाजपा के विधायक अभिजीत सिंह सांगा हैं जो कि अकबरपुर लोकसभा से टिकट के बड़े दावेदार थे। लेकिन हाईकमान ने उनको टिकट नहीं दिया। निश्चित तौर पर उनके कुछ कट्टर समर्थक नाराज तो बने ही हैं।
BJP का गढ़ है कल्याणपुर विधान सभा
कल्याणपुर विधान सभा बीजेपी का मजबूत किला है। बीजेपी हारी बाजी भी यहीं से जीत जाती है। इस विधान सभा में शहरी मतदाताओं की बड़ी संख्या हैं। जिसका सीधा लाभ भाजपा को हमेशा से मिलता रहा है। इस सीट पर एक बार फिर बीजेपी प्रत्याशी बाकी प्रत्याशियों से 25 बैठेगें। हालांकि अंदर ही अंदर विरोध की स्थिति यहां पर भी बनी है। लेकिन इसका बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता दिखाई पड़ रहा है। हां वोट अवश्य कम हो सकते हैं।
महाराजपुर विधान सभा में भी होगा तगड़ा “घमासान”
यूं तो महाराजपुर विधान सभा से योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री सतीश महाना विधायक हैं। जनता के बीच उनकी स्वच्छ छवि और खासी पैठ भी है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या यहां के नाराज मतदाताओं को भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र सिंह भोले अपने पक्ष में मोड़ पाएंगे ? इस विधान सभा में भी शहर वोटर्स हैं। मुस्लिम वोट भी यहां पर ठीक-ठाक है। जानकारों की मानें तो यहां पर “घमासान” तगड़ा होगा। यहां कई एरिया में राजाराम पाल एकतरफा लड़ रहे हैं तो कुछ जगहों पर निशा सचान का भी चुनाव ठीक है। देवेंद्र सिंह (भोले) को यदि यहां पर चुनाव जीतना है तो सतीश महाना को मैदान में लाना पड़ेगा। उनके बगैर बीजेपी को यहां कुछ लाभ होता नहीं दिखाई दे रहा है। सतीश महाना ही एक ऐसा चेहरा हैं जो कि नाराज मतदाताओं को फिर से पक्ष में ला सकते हैं।
[caption id="attachment_19355" align="alignnone" width="695"] राजाराम पाल (पूर्व सांसद) (कांग्रेस प्रत्याशी, अकबरपुर)[/caption]
कांग्रेस प्रत्याशी राजाराम पाल
सरल स्वभाव और मीठी वाणी की वजह से कांग्रेस प्रत्याशी राजाराम पाल आम आदमी के बेहद करीब रहते हैं। समाज के सभी वर्गों और जातियों में उनकी ठीक-ठाक पकड़ है। राजाराम पाल की सबसे मजबूत पकड़ गरीब तपके में हैं। हमेशा जनता के बीच रहने वाले राजाराम पाल की एक बड़ी खासियत ये है कि हर वक्त वे जनता के लिए शुलभ रहते हैं। फिर चाहे किसी के दुःख की घड़ी हो या फिर सुख की, राजाराम सभी में शामिल होते हैं। यही वजह है कि राजाराम पाल समाज के हर वर्ग के बीच में चुनाव लड़ रहे हैं। पाल वोट के साथ मुस्लिम और दलित वोट भी राजाराम पाल के खाते में अभी तक जाता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसे में यदि ब्राम्हण वर्ग का आशीर्वाद राजाराम पाल को मिला तो उनकी जीत पक्की है।
बीजेपी प्रत्याशी देवेंद्र सिंह भोले
[caption id="attachment_19356" align="alignnone" width="261"] देवेंद्र सिंह भोले (वर्तमान सांसद) (बीजेपी प्रत्याशी, अकबरपुर)[/caption]
वर्तमान सांसद देवेंद्र सिंह भोले के मजबूत विरोध की एक वजह ये भी है कि उनको एक “खास सिंडीकेट” टाइप का ग्रुप घेरे रहता है। जिसकी वजह से ये आम आदमी से सीधे मिल नहीं पाते हैं। जो इस चुनाव में साफ तौर पर दिखाई भी दे रहा है। देवेंद्र सिंह भोले का चुनाव मैनेजमेंट कुछ खास लोगों के हाथों में है। इन खास लोगों के व्यवहार की वजह से आम कार्यकर्ता दूरी बनाए हुए है। यही वजह है कि उन्होंने अपने बेटे और भाई को इन सारी कमियों को दूर करने के लिए आगे लाए हैं। पुत्र और भाई काफी हद तक कामयाब होते भी दिख रहे हैं। भोले शुरु से ही करीब दो लाख ठाकुर वोटों पर मजबूत पकड़ बनाए हैं। नाराज ब्राम्हण वोटर्स को यदि वो मनाने में कामयाब हो गए तो एक बार फिर से सांसद बनने में कामयाब हो जाएंगे।
[caption id="attachment_19357" align="alignnone" width="695"] निशा सचान (बीएसपी-एसपी गठबंधन प्रत्याशी, अकबरपुर लोकसभा)[/caption]
सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी निशा सचान
निशा सचान जातीय और पार्टी का आंकड़ा लेकर चल रही हैं। चुनाव यदि जातिवाद का चुनाव हुआ तो निशा सचान त्रिकोणीय लड़ाई में आ जाएंगी। हालांकि कुर्मी वोट बैंक इस लोकसभा में बहुत अधिक नहीं है। दलित, अति पिछड़े के साथ यदि यादव वर्ग ने पूरी तरह से गठबंधन को वोट किया तो परिणाम चौंकाने वाले ही आएंगे। हालांकि निशा सचान की अपनी खुद की कोई राजनीति पृष्ठभूमि नहीं है। उनके पति लगातार दूसरी बार पालिका चेयरमैन बने हैं। बिरादरी के वोट बैंक पर ही उनकी व्यक्तिगत पकड़ है।
लोकसभा सीट अकबरपुर (44) के जातिगत आंकड़े
(सामान्य)
ब्राम्हण - 2.95 लाख
ठाकुर - 2.15 लाख
वैश्य - 0.80
पिछड़ा वर्ग
यादव - 1.60 लाख
कुर्मी - 0.80 हजार
लोध - 0.15 हजार
अति पिछड़ी वर्ग
मौर्या - 1.20 लाख
पाल - 1.25 लाख
प्रजापति - 53 हजार
कश्यप - 41 हजार
दलित वर्ग
जाटव - 3.04 लाख
कोरी - 76 हजार
अति दलित वर्ग
बाल्मीकि - 52 हजार
पासी - 75 हजार
मुस्लिम - 1.20 लाख
नोट---पंजाबी, सिंधी, क्रिश्चियन समेत कई अन्य जाति के करीब 40 हजार मतदाता हैं।
खास--अकबरपुर लोकसभा से चुनाव लड़ रहे तीनो प्रत्याशी सोशल मीडिया में कापी फिसड्डी हैं। सभी के Facebook (Page) और (Acount) हैं लेकिन Twitter पर तीनों ही शून्य हैं। राजाराम पाल का ट्वीटर अकाउंट है लेकिन लंबे समय से कोई ट्वीट नहीं किया गया है। साथ ही उसमें फालोवर्स भी काफी कम हैं।
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