मंदी के दौर में करीब एक दशक पहले हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप कई बड़े नामी-गिरामी पत्रकारों और कर्मचारियों की जिंदगी नौकरी निकाल कर तबाह कर चुका है। कई ने खुदकुशी कर ली तो कई अभी तक कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। कंपनी की मालिकन शोभना भरतिया कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रह चुकी हैं। नौकरी से निकाले गए पत्रकारों की कभी कांग्रेस सरकार ने सुध नहीं ली और न ही अब बीजेपी ले रही है। रवींद्र ठाकुर की तड़प-तड़प कर हुई मौत समाज को आइना दिखाने वाले पत्रकारों के मुंह पर तमाचा है।
[caption id="attachment_17813" align="aligncenter" width="960"] हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप की बिल्डिंग के बाहर 13 साल से धरना दे रहे पत्रकार रवींद्र ठाकुर का निधन हो गया[/caption]
YOGESH TRIPATHI
नई दिल्ली/कानपुर। नौकरी से निकाले जाने के बाद करीब 13 बरस से हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप के बाहर न्याय की आस लेकर धरना दे रहे एक मीडियाकर्मी रवींद्र ठाकुर (56) की तड़प-तड़प कर मौत हो गई। रवींद्र ठाकुर हिमांचल प्रदेश के रहने वाले थे। फिलहाल नई दिल्ली की बाराखंभा पुलिस उनके परिजनों के आने का इंतजार कर रही है ताकि शव का पोस्टमार्टम करवाया जा सके। बात यहीं खत्म नहीं होती, इसी संस्थान के कानपुर यूनिट से जुड़े एक जिले का ब्यूरोचीफ भी मौत के मुहाने पर खड़ा है। यह ब्यूरोचीफ HIV पाजिटीव जैसी असाध्य बीमारी से पीड़ित है। उसका शरीर गल रहा है। झांसी के चिकित्सक भी जवाब दे चुके हैं लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप ने अपने इस ब्यूरोचीफ की अभी तक कोई सुध नहीं ली है। लाचारी और बेबसी की हालत में यह पत्रकार नौकरी करने को मजबूर है।
2004 में 400 कर्मचारियों को कंपनी ने किया था Out
हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप ने साल 2004 में करीब 400 कर्मचारियों को पल भर में नौकरी से बाहर कर सड़क पर खड़ा कर दिया था। इसमें हिमांचल प्रदेश के रहने वाले रवींद्र ठाकुर भी शामिल थे। नौकरी से निकाले जाने के बाद रवींद्र ठाकुर ने अपने साथियों के साथ इंसाफ पाने के लिए कानूनी लड़ाई का सहारा लिया। साथ ही वह हिन्दुस्तान ग्रुप की बिल्डिंग के बाहर धरना देकर बैठ गए। करीब 13 साल से उनका धरना अनवरत चलता रहा। इस दौरान उनके कई साथियों ने सुसाइड तक कर लिया। अपने साथियों को कंधा देने वाले रवींद्र ठाकुर की मौत तड़प-तड़प कर होगी, यह शायद ही किसी ने सोचा हो।
https://youtu.be/xMc5Oe8VsCE
धरनास्थल को ही बना लिया था अपना “घर”
हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप की बिल्डिंग के बाहर 13 साल से धरना दे रहे रवींद्र ठाकुर कभी अपने पैतृक घर या गांव नहीं गए। उनके साथियों और आसपास के लोगों की मानें तो फुटपाथ पर धरनास्थल ही उनका घर बन गया था। पिछले कई साल से उनकी जिंदगी आसपास के दुकानदारों के सहारे चल रही थी। यदि किसी ने दे दिया तो खा लिया नहीं तो भूखे पेट ही सो गए। कई बार तो वह तीन से चार दिन तक बगैर खाए-पीए ही बने रहे। यही वजह रही कि शरीर कई गंभीर रोगों की चपेट में आ गया था। लेकिन इसके बाद भी निष्ठुर हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप के खिलाफ उनका धरना बदस्तूर जारी था। इस बड़े अखबार के ग्रुप ने कई बार रवींद्र ठाकुर को धमकियां भी दिलवाईं लेकिन वह टस से मस नहीं हुए।
मौत के बाद भी नींद से नहीं जागा निष्ठुर हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप
लंबे समय तक हिन्दुस्तान टाइम्स जैसे ग्रुप में अपना सेवाएं दे चुके रवींद्र ठाकुर नौकरी से निकाले जाने के बाद 13 साल से आफिस के बाहर ही धरना दे रहे थे। गुरुवार को जब उनकी मौत हो गई तो जिसने भी सुना उसकी आंखे भर आईं लेकिन हिन्दुस्तान ग्रुप पूरी तरह से निष्ठुर बना रहा। प्रबंधतंत्र का खौफ इस कदर रहा कि यदि किसी ने मदद की भी सोची तो अपनी नौकरी का ख्याल कर वह खामोश हो गया। नई दिल्ली की बाराखंभा पुलिस का कहना है कि परिवार का कोई सदस्य अभी तक नहीं आया है। जिसकी वजह से पोस्टमार्टम में देरी हो रही है। रवींद्र ठाकुर के पूर्व संस्थान की तरफ से भी कोई आगे नहीं आया ताकि मदद हो सके।
कानपुर की यूनिट से जुड़ा है HIV पाजिटिव से पीड़ित ब्यूरोचीफ
हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप जैसे संस्थान में कर्मचारियों की क्या स्थित है यह किसी से छिपी नहीं है। हकीकत तो यह है कि कई संस्थानों में स्ट्रिंगर पत्रकारों का वेतन चपरासियों से भी कम है। महीने में लाखों का पैकेज लेने वाले संपादक जिले में स्टाफ रिपोर्टर की जगह संवाद सूत्र और स्ट्रिंगर की भर्तियां कर रहे हैं। हालांकि इन संवादसूत्रों और स्ट्रिंगरों की भर्तियां करने का अधिकार भी अब उनके पास नहीं रह गया है। इन भर्तियों के लिए उनको दिल्ली के हाईकमान से अनुमति लेनी पड़ती है। कानपुर यूनिट से जुडे एक जिले के ब्यूरोचीफ जो कि (HIV बीमारी) से संक्रमित है, उसका नाम और जनपद का नाम पोर्इटल इस लिए नहीं लिखा रहा ताकि उसकी पहचान उजागर न हो सके। हालांकि www.redeyestimes.com के पास पूरे पुख्ता प्रमाण हैं कि ब्यूरोचीफ को चिकित्सकों ने जवाब दे दिया है। यही नहीं उसका शरीर भी अब गलने लगा है। जिले के तमाम पत्रकार उसकी मदद को हाथ बढ़ा रहे हैं लेकिन संस्थान का प्रबंधतंत्र और ऊंची कुर्सी पर बैठे मोटी पगार वाले अफसरों ने अभी तक कोई सुध नहीं ली है।
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