Chitrakoot Police Blueprint Failed In Front Of DacoitesThe Truth Of Broker Journlism


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YOGESH TRIPATHI


कानपुर/चित्रकूट। यूपी के बुन्देलखण्ड स्थित दस्यु प्रभावित जनपद Chitrakoot में डकैत बबुली कोल और उसके गिरोह के साथ Encounter में UP Police ने अपने एक जाबांज सब इंस्पेक्टर JP Singh को खो दिया। शहीद सब इंस्पेक्टर JP Singh की जाबांजी, उनकी बहादुरी को सेल्यूट करते हुए www.redeyestimes.com उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता है। साथ ही पोर्टल ने चित्रकूट जनपद की पत्रकारिता, पुलिस के तमाम दावों और घटनाक्रम के  सच्चाई की सतही हकीकत कुछ सच और चर्चाओं को आप तक लाने की कोशिश की है।


Encounter पर क्या दावा कर रही है Chitrakoot Police ?

चित्रकूट पुलिस का दावा है कि लंबे समय से पुलिस दस्यु बबुली कोल की तलाश में पाठा के जंगलों में सर्च ऑपरेशन चला रही है। गुरुवार को दस्यु बबुली कोल और उसके गिरोह के निरीह चिरैया के जंगलों में मौजूद होने की खबर मिली। पुलिस का दावा है कि गिरोह को ढूंढते हुए पुलिस जंगलों में वहां पहुंच गई जहां पर दस्यु गिरोह मौजूद था। पुलिस के दावों के मुताबिक सुबह के पांच बजे थे। दस्यु बबुली कोल और उसके गैंग ने पुलिस को देखते ही अंधाधुंध गोलियां दागीं। पुलिस ने भी क्रास फायरिंग की लेकिन रैपुरा थाने के दरोगा JP Singh डकैतों की गोली लगने से शहीद हो गए। जबकि बहिलपुरवा थानेदार वीरेंद्र त्रिपाठी के कमर में गोली लगी।

https://twitter.com/CMOfficeUP/status/900960424580964352

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पुलिस को थी खबर लवलेश के नानी की तेरहवीं में आएगा गिरोह

ग्रामीणों और जनपद के कुछ बुजुर्ग पत्रकारों इस बात की तगड़ी चर्चा कर रहे हैं कि गिरोह को खत्म करने का जो ब्लूप्रिंट चित्रकूट पुलिस ने तैयार किया था उसकी योजना पुलिस सटीक नहीं बना सकी। जबरा सूत्रों के मुताबिक निरीह चिरैया गांव के पास रहने वाले एक डकैत समेत तीन को पुलिस ने उठा लिया था। इंट्रोगेशन में पुलिस को पता चला कि बुधवार को बबुली कोल के दाहिने हाथ लवलेश के नानी की तेरहवीं हैं। यह गांव निरीह चिरैया के जंगलों के पास ही है। पूरे गिरोह को खत्म करने के लिए पुलिस ने अपना जाल बिछाया। बताया जा रहा है कि इस बीच गिरोह के मुखबिरों ने दस्यु गिरोह को खतरे से पहले ही आगाह कर दिया था। लिहाजा गैंग भी पूरी तैयारी से पहुंचा। बताया जा रहा है कि जब आमना-सामना हुआ तो बौखलाए बबुली कोल गैंग ने पुलिस टीम पर अंधाधुंध फायरिंग की। जिसमें दरोगा JP Singh शहीद हो गए।

लवलेश के नानी की तेरहवीं और Encounter का “कनेक्शन”

वरिष्ठ पत्रकारों और ग्रामीणों में होने वाली चर्चाओं को यदि सच मान उनके दावों पर विश्वास करें तो बुधवार को बबुली कोल के दाहिने हाथ कहे जाने वाले लवलेश कोल के नानी की तेरहवीं थीं। चर्चा है कि पुलिस ने राजू कोल समेत तीन डकैतों को पहले ही उठा लिया था। इस लिए गैंग के तेरहवीं में पहुंचने की भनक पुलिस को लग चुकी थी। बबुली कोल के सफाए के लोग पुलिस ने घेराबंदी की। चर्चा है कि पुलिस के पहुंचने की खबर बबुली कोल भी था। देर रात आमना-सामना होने पर बबुली ने पुलिस टीम पर जमकर गोलियां चलाईं। पुलिस ने भी क्रास फायरिंग की लेकिन इस मुठभेड़ में सब इंस्पेक्टर जेपी सिंह शहीद हो गए। चर्चा है कि पुलिस बबुली कोल ढेर कर पुलिस कुछ डकैतों को सरेंडर या फिर गिरफ्तार करना चाहती थी लेकिन हो गया सबकुछ उल्टा-पुल्टा।

तो क्या ब्लूप्रिंट बनाने में फ्लाफ हो गई चित्रकूट पुलिस

दरोगा की शहादत के बाद अब तमाम तरह के सवाल पुलिस टीम पर उठ रहे हैं। यदि पुलिस की कहानी को ही सच मान लिया जाए तो एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर पुलिस की रणनीति कहां फ्लाफ रही ? पुलिस का दावा है कि कई डकैतों को गोलियां लगीं हैं ? पुलिस ने यह भी कहा कि जंगल के तीन रास्तों पर घेराबंदी की गई है ? तो फिर भी डकैत कैसे भाग निकले ? खुद को हाईटेक कहने वाली यूपी पुलिस ने नई टेक्नालजी का प्रयोग क्यों नहीं किया ? यूपी के सबसे बड़े इनामी डाकू को घेरने से पहले क्या ऊपर बैठे अफसरों को सूचना दी गई ? क्या उनसे पूरी रणनीति को साझा किया गया ? PAC या फिर अन्य सुरक्षा बलों को क्यों नहीं ऑपरेशन में शामिल किया गया ? रात के अंधेरे में एनकाउंटर के लिए पहुंची पुलिस के पास क्या नाइटविजन कैमरा था ? लखनऊ में बैठे पुलिस अफसरों को इस बडे घटनाक्रम की जानकारी देर से लोकल पुलिस ने क्यों दी । सोशल मीडिया twitter पर www.redeyestimes.com दरोगा जेपी सिंह के शहीद होने की खबर ट्वीट की। डीआइजी चित्रकूट ने सही जानकारी जब चित्रकूट पुलिस से मांगी तो जवाब में उत्तर मिला कि दरोगा जेपी सिंह शहीद हो गए हैं। चर्चा है कि पुलिस की रणनीति सही नहीं थी, जिसकी वजह से दरोगा जेपी सिंह शहीद हुए और गिरोह भाग निकला। पूरे घटनाक्रम पर किसी भी बड़े अफसर ने कोई बयान देना भी मुनासिब नहीं समझा।

वाट्सअप के चिरकुट पत्रकार बड़े घटनाक्रम पर करते रहे पुलिस की “पत्तेचाटी”

पत्रकारिता का स्तर कितना गिर गया है इसका सहजता से अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। थाने और चौकी पर जो शाम चार बजे से रात आठ बजे तक दिखे उसे पत्रकार नहीं दलाल कहिए। इन्हीं दल्ले टाइप के पत्रकारों ने गुरुवार सुबह से वाट्सअप पर चित्रकूट पुलिस का गुणगान करना शुरु कर दिया। पुलिस के खाते में नंबर बढ़वाने में लगे चिरकुट पत्रकारों ने वाट्सअप पर अपनी चाटुकारिता वाली पत्रकारिता शुरु कर दी। सुबह 11 बजे के करीब तक इन दल्ले पत्रकारों ने बबुली कोल, लवलेश समेत चार डकैतों के मारे जाने की खबर भी चला दी। इतना ही नहीं Encounter स्थल से करीब 50 किलोमीटर दूर कर्वी मुख्यालय में बैठे इन पत्रकारों को मौका-ए-वारदात पर मांस के लोथड़े और खून के धब्बे भी दिख गए। अफसरों को वाट्सअप ग्रुप में जोड़कर चिरकुट पत्रकारिता करने वाले इन दल्ले टाइप के पत्रकारों ने पुलिस को काफी राहत दे दी।

ठेकेदारी, गाड़ियां चलवाना और ठर्रा लगाना है चिरकुटों का पेशा

वाट्सअप पर पत्रकारिता की धज्जियां उड़ाने वाले इन चिरकुट पत्रकारों का पेशा पत्रकारिता नहीं है। सिर्फ पुलिस की भाषा लिखने वाले यह दल्ले पत्रकारिता का पहला अक्षर “प” भी सही तरीके से नहीं जानते। थानेदारों और सिपाहियों के पैर छूकर अवैध रूप से अपनी गाड़ियां चलवाने में माहिर कई दल्ले तो नेताओं के तलवे चाटकर ठेकेदारी कर रहे हैं। कुछ दल्लों को तो सिर्फ शाम के समय देशी ठर्रा चाहिए होता है। इन सबके बाद धन्य हैं उन अखबारों के संपादक जो अखबारों के लिए विज्ञापन और अपने लिए महीने और साल के त्योहारों पर गिफ्ट के लालच में ऐसे दलालों को रिटेनरशिप पर रखे हुए हैं। जी, हां यह सच्चाई कि रिटेनरशिप पर पांच हजार रुपए भी नहीं मिलते हैं। मतलब साफ है कि अंगूठा छाप मनरेगा श्रमिक के बराबर भी ये दल्ले पत्रकार अपने संस्थानों से वेतन नहीं पाते हैं लेकिन फिर खुद में दंभ बहुत भरते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि जिले का ब्यूरो चीफ बनने के लिए ये दल्ले एड़ी से चोटी का जोर लगा देते हैं। बुन्देलखण्ड का शायद ही कोई ऐसा जिला हो जहां दल्ले पुलिस की साठगांठ से खनन ठेकेदारों से पैसा न ले रहे हों। एक जनपद के दो बड़े अखबारों के ब्यूरोचीफ के खिलाफ www.redeyestimes.com ने कुछ महीने पहले खबर भी चलाई थी, जिसके बाद दोनों दल्ले हटाकर कानपुर के ऑफिसों में बैठाए गए।

बड़े अखबार को लेनी पड़ी अपने शराबी पत्रकार की मदद


दो सप्ताह पहले चित्रकूट जनपद से बांदा ट्रांसफर किए गए एक शराबी पत्रकार की मदद एक बड़े संस्थान को Encounter की रिपोर्टिंग के लिए लेनी पड़ी। यह पत्रकार तमाम शिकायतों के बाद बांदा लाया गया था। चित्रकूट जनपद का दफ्तर सिर्फ ऑपरेटर के बल पर चल रहा था। AC में बैठने वाले अखबार के अफसरों को उस समय सांप सूंघ गया जब चित्रकूट में दरोगा के शहीद होने की खबर मिली। अफसरों ने तत्काल बांदा से इस पत्रकार को भेजा। इस पत्रकार के बारे में बताया जाता है कि यह पुरानी फोटो को नई खबर के साथ लगाने में माहिर है और उसने वहीं किया भी। पुरानी फोटो सर्च ऑपरेशन की भेज उसने कानपुर, लखनऊ और दिल्ली में बैठे सर लोगों का दिल भी जीत लिया। इस पत्रकार को अपना पूरा नाम टाइप करने में पांच मिनट लग जाते हैं।

ददुआ के लिए Army और ठोकिया के सफाए को लगे थे कमांडो

पाठा के जंगलों में लंबे समय तक आतंक मचाने वाले दस्यु स्म्राट ददुआ के लिए अस्सी के दशक में सेना तक लगानी पड़ी थी। लेकिन सफलता STF को साल 2007 में मिली। STF के छह जवानों को मारने के बाद किरकिरी बने ठोकिया के लिए कमाडों तक लगाने पड़े। STF ने उसे ठोकिया को भी ठोंक दिया। अब सवाल यह उठता है कि बबुली कोल को मारने के लिए STF या फिऱ सेना की मदद ली जाएगी या फिर वह पाठा के जंगलों में दहशतगर्दी फैलाता रहेगा ?

जनता को याद आए रणनीति के माहिर पूर्व कप्तान पवन कुमार

अपने रणनीति से बलखड़िया जैसे डाकू को ढेर करने के बाद उसके गिरोह को पूरी तरह से छिन्न-भिन्न करने वाले चित्रकूट पुलिस के पूर्व एसपी पवन कुमार को लोग एक बार फिर याद कर रहे हैं। चित्रकूट की जनता हो या फिर वरिष्ठ पत्रकार सभी का कहना है कि पवन कुमार एनकाउंटर के स्पेशलिस्ट ही नहीं वह रणनीति बनाने में भी मॉस्टर माइंड थे। शायद यही वजह थी कि दो साल पहले बलखड़िया को मारने के बाद वह गिरोह के कई सदस्यों को दबोचने में भी सफल हुए थे। अब सवाल उठता है कि खूंखार हो चुके बबुली कोल को मारने के लिए क्या अफसर कोई ठोस रणनीति बनाकर स्पेशल फोर्स लगाएंगे या फिर शहीद दरोगा जेपी सिंह की शहादत को यूं हीं भूल जाएंगे ?

जल्द दो और गिरफ्तारियां दिखा वाहवाही लूट सकती है पुलिस !

डकैत राजू कोल को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। पुलिस का दावा है कि एनकाउंटर के दौरान राजू के पैर में पुलिस की गोली लगी। उसे मौके से गिरफ्तार कर लिया गया है। चर्चा है कि पुलिस अगले कुछ घंटों में दो और अस्थायी डकैतों को गिरफ्तार कर वाहवाही लूट सकती है। सवाल यह है कि क्या शहीद दरोगा जेपी सिंह को सिर्फ दो गिरफ्तारियों से सच्ची श्रद्धांजलि मिल जाएगी ?

गुस्से में हैं साथी पुलिस कर्मी

रैपुरा थाने के जाबांज और बहादुर दरोगा जेपी सिंह की शहादत के बाद साथी पुलिस कर्मियों में खासा गुस्सा है। शरीर पर सरकारी वर्दी होने की वजह से वह गुस्से का इजहार नहीं कर पा रहे हैं लेकिन क्रोध इतना है कि बबुली कोल या फिर उसके गिरोह का सफाया कर वह साथी दरोगा की शहादत का बदला लेना चाहते हैं।

 

 

 

 

 

 
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